गुरुत्वाकर्षण बल क्या है , परिभाषा , गुण , विशेषता , विमा , मात्रक , सूत्र (gravitational force in hindi)

(gravitational force in hindi) गुरुत्वाकर्षण बल क्या है , परिभाषा , गुण , विशेषता , विमा , मात्रक , सूत्र : प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक दो बिन्दु द्रव्यमान एक दुसरे को आकर्षित करते है , पिण्डो के इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है।
दो पिंडो के मध्य लगने वाले आकर्षण बल का मान ज्ञात करने के लिए न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम काम में लिया जाता है , जिसके अनुसार यदि दो पिंडो का द्रव्यमान m1 तथा m2 हो और इन दोनों पिंडो के मध्य की दूरी r हो तो इन दोनों पिंडो के मध्य लगने वाले इस आकर्षण बल (गुरुत्वाकर्षण बल) का मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है –

यहाँ G = सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक है।
अब हम अध्ययन करते है कि इस आकर्षण बल अर्थात गुरुत्वाकर्षण बल के क्या क्या गुण अर्थात विशेषताएँ होती है।

गुरुत्वाकर्षण बल के गुण या विशेषतायें (properties of gravitational force)

गुरुत्वाकर्षण बल के उदाहरण

सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियम (newton’s universal law of gravitation in hindi) : ग्रहों और चन्द्रमा की गतियों के अपने अध्ययन के दौरान , न्यूटन ने निष्कर्ष निकाला कि गुरुत्वीय आकर्षण न केवल पृथ्वी की ओर गिरते सेव की गति और पृथ्वी के चारो ओर घूर्णन करते चन्द्रमा की गति के लिए उत्तरदायी है बल्कि “ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु प्रत्येक अन्य वस्तु को आकर्षित करती है ” के लिए भी उत्तरदायी है।

गति के अपने तीन नियमों के साथ , न्यूटन ने अपने उत्कृष्ट फिलोसोफिया नेच्युरेलिस प्रिन्सीपिया मेथमेटिका (जिसे सरल रूप में प्रिन्सिपिया कहा जाता है ) में 1687 में गुरुत्वाकर्षण के नियम को प्रकाशित किया। इस नियम के अनुसार –

ब्रह्माण्ड में पदार्थ का प्रत्येक कण बल द्वारा प्रत्येक अन्य कण को आकर्षित करता है जो कि कणों के द्रव्यमानों के गुणन के समानुपाती होता है और इनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

यहाँ G समानुपाती नियतांक है , जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहा जाता है।

G के मान की यंत्र के उपयोग द्वारा प्रायोगिक रूप से गणना की जाती है , जिसे “केवेन्डिश एंठन तुला” कहा जाता है | वर्तमान स्वीकार्य मान G = 6.67 x 10 -11 N.m 2 /Kg 2 है |

यहाँ G का विमीय सूत्र [M -1 L 3 T -2 ] है |

यदि F12 , m2 द्रव्यमान के कारण m1 द्रव्यमान पर गुरुत्वीय बल है और r12 , m2 के सापेक्ष m1 का स्थिति सदिश है , तब न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम का सदिश रूप –

गुरुत्वाकर्षण से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी

यदि F1 , F2 . . . . .Fn क्रमशः द्रव्यमान m1 , m2 . . . . . mn के कारण कण पर क्रियाशील पृथक बल है , तब कण पर क्रियाशील कुल बल F = F1 + F2 + . . . . . . . + Fn होता है।

गुरूत्वाकर्षण बल– ब्रह्माण्ड में प्रत्येक कण दुसरे कण को केवल अपने द्रव्यमान के कारण ही आकर्षित करते है तथा किन्ही भी दो कणों के बीच इस प्रकार के आकर्षण को व्यापक रूप से गुरूत्वाकर्षण कहते है। जैसे- यदि एक-एक किलोग्राम के दो पिण्डों को 1 मीटर की दूरी पर रखा जाय, तो इनके मध्य 6.67ग10.11छ का बल लगेगा। यह बल बहुत ही कम है, इसका कोई भी प्रभाव दिखाई नहीं देगा। परन्तु विशाल खगोलीय पिण्डों के मध्य यह बल इतना अधिक होता है, कि इसी के कारण वे केन्द्र के चारों ओर घूमते रहते है और संतुलन में बने रहते हैं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर और चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ही घूमते रहते है।

गुरूत्वाकर्षण

चार मौलिक बलों में गुरूत्वाकर्षण एक कमजोर अथवा क्षीण मौलिक बल है, जो ब्रह्मांड में प्रत्येक कण या पिण्ड के बीच उनके द्रव्यमान के कारण लगता है। इसे न्यूटन ने अपनी पुस्तक प्रिंसीपिया में प्रकाशित किया था।

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम- ब्रह्माड में किन्ही दो पिंडों के मध्य कार्य करने वाला आकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

माना कि उ1 एव उ2 द्रव्यमान के दो पिण्ड एक-दूसरों से त दूरी पर स्थित है, तो न्यूटन के नियमानुसार उनके साथ बीच लगने वाला आकर्षण बल थ् होगा-

, और या, , जहाँ ळ एक नियतांक है।

ळ को सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण नियतांक कहते है, जिसका मान 6.67 ग 10-11 छउ2धह2 होता है।

गुरूत्व- न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण क नियम में गुरूत्वाकर्षण वह आकर्षण बल है, जो किन्ही दो वस्तुओं के बीच कार्य करता है। यदि इन वस्तुओं में एक पृथ्वी हो, तो गुरूत्वाकर्षण को गुरूत्व कहते है। अतः गुरूत्व वह आकर्षण बल है। जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। अतः गुरूत्व गुरूत्वाकर्षण का एक उदाहरण है। गुरूत्व बल के कारण ही पृथ्वी की सतह से मुक्त रूप से फेंकी गयी वस्तु वापस पृथ्वी की सतह पर आकर गिरती है।